Shiv — A Reflection Within
This poem is written in Hindi and inspired by the divine voice of Lord Shiva — a reminder that divinity resides within us. I wanted to express this emotion in my mother tongue, where it feels most authentic.
जब जब तू मांगे मेरा साथ,
बस दिल से पुकार — “हे मेरे नाथ!”
सरल हूँ मैं, पर सरल मेरा मार्ग नहीं,
त्याग दे अहंकार, ईर्ष्या का नाम न हो कहीं।
हर्ष का दाता हूँ, सृष्टि का आधार हूँ,
तू देख नहीं पाता मुझे, क्योंकि मैं निराकार हूँ।
कोशिश कर तू, मुझ तक कदम तो बढ़ा,
मैं वो नहीं, जो अब तक तूने सुना या पढ़ा।
झाँक ले अपने भीतर, और देख क्या मिला तुझे,
सत्य हूँ मैं, धर्म हूँ — कहते हैं चेतना मुझे।
अगर है तनिक भी संदेह, तो उसे तू छोड़ दे,
पग अपने ज़रा तू कर्तव्य की तरफ़ मोड़ दे।
नहीं भटकना पड़ेगा तुझे यूँ मेरी तलाश में,
बसता हूँ मैं तेरे भीतर — संग ही कैलाश में।
“The divine is not distant — it’s within.”



One Comment
Piyush yadav
Nice kavita…